इतिहास शिक्षक के सम्प्रत्यय – Ithihas shikshak ke sampratyay

इतिहास शिक्षक के सम्प्रत्यय – Ithihas shikshak ke sampratyay

इस पोस्ट में हम आपको इतिहास शिक्षक के सम्प्रत्यय – Ithihas shikshak ke sampratyay  के बारे में जानकारी देने वाले है।  शिक्षा प्रक्रिया के तीन केन्द्र बिन्दु हैं—शिक्षक, बालक तथा पाठ्यक्रम । शिक्षक की सफलता इन तीनों की सुसम्बद्धता पर ही निर्भर होती है।

इतिहास शिक्षक के सम्प्रत्यय - Ithihas shikshak ke sampratyay

लेकिन हमारा पाठ्यक्रम, पाठशाला भवन, फर्नीचर, प्रयोगशाला, सहायक सामग्री, मूल्यांकन एवं निर्देशन कार्यक्रम आदि कितने ही अच्छे क्यों न हों वे तब तक निरर्थक हैं, जब तक एक अच्छे शिक्षक द्वारा उनमें जीवन संचार न किया जाए, शिक्षा प्रक्रिया के संचालक के रूप में उनका बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। संचालक ही शिक्षा में गुणात्मक विकास के लिए उत्तरदायी है। यदि शिक्षक रूपी संचालक के ज्ञान, योग्यता एवं व्यवहार को विकसित न किया गया तो शिक्षा का गुणात्मक पक्ष छिछला बना रहेगा।

इतिहास शिक्षक सामान्य शिक्षक से भी उच्च स्थान का अधिकारी होता है क्योंकि इतिहास को पांचवां वेद (इतिहास: पंचमो वेद) भी कहा जाता है। दीक्षित एवं बघेला ने इतिहास शिक्षक के महत्त्व को बतलाते हुए लिखा है- “भूत तथा वर्तमान को भली-भाँति समझने में इतिहास शिक्षक की प्रमुख भूमिका होती है जिसे वह अपनी योग्यता तथा कुशलता से ही निभा सकता है। इतिहास कला एवं विज्ञान दोनों का समन्वित रूप है। सत्य तथ्यों के अन्वेषण निर्धारण, वर्गीकरण तथा व्यवस्था के रूप में इतिहास वैज्ञानिक पद्धति का अनुसरण करता है किन्तु उन्हीं सत्य तथ्यों को रोचक एवं प्रभावी भाषा शैली में व्यक्त करते समय वह कला का अवलम्बन लेता है।” इतिहास के लिए ये दोनों पक्ष आवश्यक हैं। अत: इतिहास शिक्षक को भी इन पक्षों को उचित सामंजस्य करना होता है जिससे कि उसका शिक्षण उपयोगी एवं प्रभावशाली बन सके। इस प्रकार इतिहास विषय की उक्त विशिष्टताओं के कारण इतिहास शिक्षक कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो जाता है, जो शिक्षक में कुछ विशेष गुणों की अपेक्षा करता है।

 

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